Wednesday, May 25, 2016

शोला हूँ समन्दर को जलाने की हैसियत रखता हूँ मैं,
तेरे शबनमी अश्क़ों में मगर डूब मरने की चाहत रखता हूँ मैं,

तेरे इश्क़ का जुनूं है कि खुद को सम्भाले रखता हूँ मैं,
वरना तबाह सारी कायनात को करने की कूवत रखता हूँ मैं।।।।

Saturday, May 11, 2013

ज़ज्बात अपने दिल की

------खुदगर्ज़  नदीम 

ज़ज्बात अपने दिल की
दिल में ही दबा रहने दो तुम..
अश्कों को बंद अपनी आँखों में
और होठो पर हँसी सजा लो तुम...


ये दुनिया है पत्थर दिल इंसानों की
 इनसे ना गिला  किया करो तुम
अश्कों को बंद अपनी आँखों में
और होठो पर हँसी सजा लो तुम...


है चेहरे पर चेहरा सजा सबके यहाँ
चेहरा कोई नया लगा लो तुम
अश्कों को बंद अपनी आँखों में
और होठो पर हँसी सजा लो तुम..


 ढूँढते हो वफा की सीरत “नदीम ” तुम हर कहीं
पहले खुद से ही मोहब्बत निभा लो तुम
अश्कों को बंद अपनी आँखों में
और होठो पर हँसी सजा लो तुम...

Tuesday, April 30, 2013

                              

                                 ज़रा सी हंसी लबों पर उनकी 

                                                                  --- "खुदगर्ज़ नदीम " 


ज़रा सी हंसी लबों पर उनकी 
और चेहरा चाँद सा  निखर-निखर गया
बरसों  से सूखे पड़े थे जो चश्म 
आज पल में भर-भर सा गया ....

कहती थी  खामोश निगाहें उनकी 
दर्द जो सितमगर दे गया 
आज लबों ने ज़रा सी हरकत क्या  की
दस्तक खिज़ा में बहार दे गया ....



Thursday, April 25, 2013

शाम की सुनहरी डलती धुप में, बर्हमपुत्र नदी के किनारे बेठा,अपनी धुन में खोया था, कि एक शोर ने मेरे ख्यालों को जैसे बंग कर दिया, "दादा, मुकु लोई जुआ (मुझे भी ले जाओ), एक औरत हांफते हुए कश्ती वाले को कह रही थी, मगर कश्ती वाला ना जाने किस जल्दी में था, रुका नहीं..औरत बढबढाते हुए वहीँ किनारे पर बेठ गई.. मैं रेत पर लेटे-लेटे फिर से ख्यालों में ढूब गया, मगर अबकी बार मेरे कानो में सचिन देव बर्मन जी का गाना गूंज रहा था "वहाँ कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम लेले घडी भर ये छ्येयाँ पाएगा कहाँ... वहाँ कौन है तेरा...

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फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने
                   
                               ----खुदगर्ज़ नदीम

फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने,,
पल्बर की थी मुलाकात, मगर अहसास दिला दिया उसने,..
क्या खोया मैंने और क्या पा लिया उसने,
वोही जाने जिसका है ये खेल, बड़ी बेदर्दी से खेला मगर उसने,
मैंने चाँद-तारों की तो नहीं की थी बातें कभी..
मैं ज़मीं का था, सितारे ज़मीं पर दिखा दिया उसने..
हकीकत “नदीम” तेरे फसाने की कोई जानता नहीं,
पूछते हैं सभी मगर किसलिए, क्यूँ अर्श से फर्श पर ला दिया उसने....

Wednesday, April 24, 2013


तेरी ऑंखें क्यूँ खुद-ब-खुद बरसने लगती  हैं 

--------------खुदगर्ज़ नदीम

तेरी ऑंखें क्यूँ खुद-ब-खुद बरसने लगती हैं
खतावार वो हैं सज़ा खुद को देने लगती हैं,

दिल-ए-नाशाद बारहा क्यूँ उन्हें याद करती हैं
ज़िक्र-ए-यार के नाम से ही जो बेज़ार लगती हैं
(दिल-ए-नाशाद-dishearten soul, बेज़ार-uninterested)


वादे वफा से जो ना इत्तेफाक रखती हैं
ऐसे सनम से दिल क्यूँ तवक्को-कुछ खास रखती है
(तवक्को- expectations)

है “खुदगर्ज़” तुझको भी खबर उसके ना आने की

फिर भी  क्यूँ तेरी नजर उसके इंतज़ार में लगती हैं ..